ग्रीनहाउस मे बीज रहित खीरे की खेती
जलवायु
साधारणत: खीरा उष्ण मौसम की फसल है। वृध्दि की अवस्था के समय पाले से इसको अत्यधिक हानि होती है। फलों की उचित वृध्दि व विकास के लिए 15-20 डिग्री से.ग्रे. का तापक्रम उचित होता है। खरबूजा व तरबूज की अपेक्षा खीरे को कम तापक्रम की आवष्यकता पड़ती है। आजकल विदेशों मे उपलब्ध किस्मों को सर्दी के मौसम मे भी ग्रीनहाउस या पोलीहाउस मे सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है। इस प्रकार के ग्रीनहाउस या पॉलीहाउस को ठण्डा या गर्म करने के आवष्यकता नही होती है तथा इस प्रकार के प्राकृतिक वायु संवाहित ग्रीनहाउस या पॉलीहाउस में एक वर्ष मे खीरे की तीन फसले पैदा करके अत्यधिक लाभ लिया जा सकता है। यह तकनीकी बड़ी व मध्यम जनसंख्या वाले षहरो के चारों ओर खेती करने वाले कृषको के लिये बहुत लाभकारी व उपयोगी प्रमाणित हो सकती है।
पौध तैयार करना
नियंत्रित स्थिति मे ग्रीनहाउस नर्सरी में खीरे की वर्ष भर पौध तैयार की जा सकती है। सर्दी के मौसम मे खीरे की पौध तैयार होने से 25-28 दिन तक का समय लेती है। लेकिन गर्मी के मौसम में इस विधि से पौध 15-18 दिन में रोपाई योग्य हो जाती है। सर्दी में बीजों को ट्रे में बोने के बाद अंकुरण हेतु 24 से 25 डिग्री से. ग्रे. तामक्रम पर रखा जाता है। अंकुरण के तुरन्त बाद उनको नर्सरी ग्रीनहाउस या पॉलीहाउस मे फैला दिया जाना चाहिये। इस प्रकार पौध में जड़ों का विकास बहुत अच्छा होता हैं तथा जडें माध्यम के चारो और लिपट जाती है। इससे उन्हें ट्रेज से निकालने पर जड़ों को कोई नुकसान भी नही होता है। क्योकि बेल वाली सब्जियाँ जड़ों में कोई नुकसान सहन नही कर सकती है। अत: उनकी पौध तैयार करने का यह एक मात्र उपयुक्त उपाय व साधन है।
भूमि व उसकी तैयारी
ग्रीनहाउस के अन्दर पौध की रोपाई से एक माह पहले खेत की गहरी जुताई करके भूमि को अच्छी प्रकार तैयार करना चाहिए तथा भूमि से विभिन्न प्रकार के रोगाणुओं व कीटाणुओं के निदान के लिए मिट्टी को फार्मल्डीहाइड के घोल से उपचारित करना चाहिए। ग्रीनहाउस की मिट्टी को पारदर्शी पॉलीथीन (30 से 40 माइक्रान मोटाई) से लगभग 15 दिन तक ढककर खुली धूप आने देना चाहिए जिससे पोलीथीन चादर के अन्दर का तापक्रम बढ़े और गैस सरलता से कवक आदि को मार सके। इस प्रकार उपचारित मिट्टी को लगभग एक सप्ताह के लिए खुला छोड़ देना चाहिए तथा उसको उलटते-पलटते रहना चाहिए जिससे उसमें उपस्थित दवा (गैस) का अंश मिट्टी से निकल जाये तथा जब पौध की रोपाई की जायें तो दवा का विपरीत प्रभाव पौधे की वृध्दि व विकास पर न पडे।
रोपाई व उसका समय
ठीक प्रकार से बनी हुई क्यारियो पर ड्रिप पाइप (Drip lines) डालकर पौध की रोपाई करना चाहिए। रोपाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक पौध को उचित दूरी पर एवं ड्रिप लाइन में उपलब्ध छिद्र के पास ही पौधों को रोपा जाये ताकि छिद्र से निकला हुआ जल व जल मिश्रित उर्वरक पौधों की जड़ों को पूर्ण रूप से तथा आसानी से उपलब्ध हो सके। खीरा विभिन्न मौसम के लिए उपलब्ध किस्मों के अनुसार पूरे वर्ष उगाया जा सकता है। दो उठी क्यारियों के बीच से दूरी 1.5 से 1.6 मीटर होनी चाहिए तथा इसको एक ही कतार पर 30 से.मी. की दूरी पर रोपते है। जिससे 1000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में 2200-2300 तक पौधे लगाये जा सकते हैं।
साधारणतया ग्रीनहाउस में ऐसी किस्मों का चुनाव किया जाता है जो कि गाइनोसियस हो (बीज रहित) तथा फल कोमल एवं मुलायम एवं उपज अच्छी हो। इस प्रकार की किस्मों में बगैर परागण के सीधा फल का विकास होता हैं। इन किस्मों का विकास मुख्यत: यूरोपीय देशों व इजराइल में किया गया है। कई बड़ी-बडी बीज कम्पनियां भी हमारे देश में इस प्रकार की किस्मों को उपलब्ध करा रही है। यूरोप में विकसित बीज रहित किस्मों में सेरिंग व हसन गर्मी के लिये तथा मुहासन व दीनार सर्दी के मौसम के लिए उत्तम है। देश में उपलब्ध ऐसी किस्मों में नन-9729, नन-3019, यियान आदि प्रमुख है। ग्रीनहाउस में मोनोसियस किस्मों (नर व मादा फूल एक ही पौधों पर अलग-अलग शाखाओं पर बनते है) को भी उगाया जा सकता है। लेकिन इसके उगाने के लिए परागण कार्य के लिये शहद मक्खियों की आवश्यकता होती हैं। तथा इसमें कटाई-छंटाई का कार्य भी अलग ढंग से किया जाता है। इसमें प्रमुख किस्में जापनीज लांग ग्रीन, पूसा संयोंग, प्वाइनसेट आदि हैं।
खीरे के पौधो को एक प्लास्टिक की रस्सी के सहारे लपेटकर ऊपर की ओर चढ़ाया जाता है। इस प्रक्रिया से प्लास्टिक की रस्सियों को एक सिरे की पौधों के आधार से तथा दूसरे सिरे को ग्रीनहाउस में क्यारियों के ऊपर 9-10 फीट ऊँचाई पर बंधे लोहे के तारों पर बाँध देते हैं। तथा अन्त में जब पौधा उस तार के बराबर जिस तार पर रस्सी का दूसरा सिरा बँधा होता है, तो पौधो को नीचे की ओर चलने दिया जाता हैं। तथा साथ-साथ विभिन्न दिशाओं से निकली शाखाओं की निरन्तर काट-छांट करनी चाहिये। मोनोशियस किस्मों में मादा फूल मुख्य शाखा से निकली द्वितीय शाखाओं पर ही आते है अत: उनकी कटाई नही की जाती है अन्यथा उपज मे भारी कमी होती हैं। कटाई-छँटाई करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखे कि हमने किस किस्म को उगाया है।
पौधों की उर्वरक व जल की मात्रा मौसम एवं जलवायु पर निर्भर करती है। आमतौर पर पानी 2.0 से 2.5 धन मीटर प्रति 1000 वर्ग मीटर के हिसाब से गर्मी में 2 से 3 दिन के अन्तराल तथा सर्दी में 6-8 दिन के अन्तराल पर दिया जाता है। गर्मी में फसल में जल की मात्रा फल आने की अवस्था मे 3.0 से 4.0 धन मीटर तक बढ़ा दी जाती है। तथा उर्वरक पानी के साथ मिलाकर ड्रिप सिंचाई प्रणाली द्वारा दिये जाते है। नत्रजन 80 से 100 पी.पी.एम., फास्फोरस 60 से 70 पी.पी.एम तथा पोटाश 100 से 120 पी.पी.एम. तक दिये जाते है। इनकी मात्रा को फसल की अवस्था, भूमि के प्रकार व मौसम के अनुसार घटाया व बढ़ाया जा सकता है।
इस प्रकार 1000 वर्ग मीटर क्षेत्र में खीरे की बीज रहित किस्मों की तीन फसल लेकर 120 से 150 कुन्तल उच्च गुणवत्ता वाले फलों की उपज ली जा सकती है। ग्रीष्मकालीन व वर्षाकालीन फसल की अवधि 2.5 से 3.0 माह तक होती है जबकि सर्दी की फसल की अवधि 3.0-3.5 माह की होती है। इस प्रकार के खीरे को 8 से 10 से.मी. लम्बाई व कम मोटाई मे तोड़कर ग्रेडिंग करके उच्च बाजार में अधिक भाव पर बेचा जा सकता है। इस प्रकार की किस्मों को बहुत कम लागत वाले ग्रीनहाउस में भी सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है। सर्दी के मौसम मे ग्रीनहाउस या अन्य संरक्षित संरचना को चारों ओर से पर्दे बन्द करके अन्दर के तापमान को ऊँचा रखा जाता है। फिर भी कम तापमान के कारण सर्दी फसल की अवधि बढ़कर लगभग 4 से 4.5 महीने तक हो जाती है।