रासायनिक खाद के दुष्परिणाम, जैविक खेती से संवरेगा भविष्य
किसान अब रासायनिक खेती की बजाय जैविक खेती अपनाने लगे हैं। पश्चिमी राजस्थान की चार उच्च मूल्य की फसलों तिल, ग्वार, ईसबगोल जीरे का प्रतिवर्ष करीबन 2 हजार करोड़ का निर्यात होता है। इसमें जैविक खेती भी शामिल है। काजरी ने निरंतर शोध के बाद किसानों को समूह रूप में इसकी जानकारी दी। अब किसान जैविक खाद तैयार कर फसल लेने लगे हैं।
मारवाड़ में 80 प्रतिशत भू-भाग पर वर्षा आधारित खेती होती है। यहां रासायनिक खाद का उपयोग बहुत कम किया जा रहा है। ऐसे में जैविक खेती की प्रचुर संभावनाएं हैं।
शोधकर्ताओं का मानना है कि किसान जैविक खाद स्वयं बनाएं तभी खेती लाभप्रद होगी। बाजार में जैविक खाद महंगी मिलती है और गुणवत्ता भी कमजोर हो सकती है। जोधपुर में पाल रोड पर स्थित कन्हैया गोशाला भी जैविक खाद तैयार कर किसानों को सप्लाई कर रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि रासायनिक खेती से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ने की पूरी आशंका रहती है। इसके निरंतर उपयोग से कैंसर तक हो सकता है।
नाम : गणपतसिंह
गांव:राणीसर
उपलब्धि: 31बीघा खेत में मूंग, जीरा, गेहूं की जैविक खेती अपनाकर उत्पादन लाभ बढ़ाया।
नाम : अर्जुनराम
गांव:बींजवाड़िया
उपलब्धि: 25बीघा खेत में तिल, जीरा, गेहूं की जैविक खेती कर दोहरा लाभ प्राप्त किया।
1495
करोड़का कुल प्रावधान
100000
क्लस्टर3 वर्ष में कवर
50
किसानहर क्लस्टर से जुड़ेंगे
500
करोड़की लागत से प्रथम वर्ष में 33 हजार क्लस्टर होंगे कवर
यह है जैविक खेती
स्थानीयरूप से उपलब्ध जैविक प्राकृतिक संसाधनों जैसे अपशिष्ट, फसल अवशेष, वर्षा जल इत्यादि का सदुपयोग कर प्रकृति मित्र तकनीक से फसल का पोषण रक्षण प्रबंधन करने को जैविक खेती कहते हैं।
हरजिले के लिए योजना
राजस्थानके प्रत्येक जिले में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए 100 हैक्टेयर क्षेत्र को चुना जाएगा। प्रत्येक हैक्टेयर के लिए 10 हजार रुपए उद्यानिकी मिशन के तहत दिए जाएंगे।
तीन साल बाद परिणाम सामने आएंगे
काजरी के वैज्ञानिक डॉ. एके शर्मा के अनुसार अगर पहले से किसान खेती में रासायनिक खाद का उपयोग कर रहे हैं तो ऐसे खेतों में जैविक खाद के उपयोग के तीन साल बाद लाभ मिलेंगे।
साभार दैनिक भास्कर